नई दिल्ली। देश के दो बड़े वित्तीय संस्थानों — भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) — के बीच सोशल मीडिया पर ‘साहित्यिक चोरी’ (Plagiarism) को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। मामला तब सामने आया जब RBI के एक अधिकारी ने SBI की ‘Ecowrap’ रिपोर्ट पर आरोप लगाया कि उसमें RBI की मॉनेटरी पॉलिसी रिपोर्ट से डेटा, चार्ट और विश्लेषण हूबहू कॉपी किए गए हैं।
RBI की मॉनेटरी पॉलिसी विंग में पदस्थ असिस्टेंट जनरल मैनेजर सार्थक गुलाटी ने लिंकडिन (LinkedIn) पोस्ट के ज़रिए SBI पर आरोप लगाया कि उसने जुलाई और अक्टूबर 2025 की Ecowrap रिपोर्ट में RBI के पैराग्राफ और विश्लेषण को बिना किसी श्रेय दिए इस्तेमाल किया है। उन्होंने कहा, “हम आर्थिक शोध में मौलिकता और ईमानदारी पर भरोसा करते हैं, लेकिन ऐसी घटनाएं रिसर्च की साख और संस्थानों की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाती हैं।”
गुलाटी ने अपनी पोस्ट में #ResearchIntegrity और #OriginalWorkMatters जैसे हैशटैग का इस्तेमाल करते हुए शोध में पारदर्शिता और नैतिकता पर बहस शुरू करने की अपील की।
SBI ने दी सफाई — “डेटा अपडेट किया, चोरी नहीं की”
RBI अधिकारी के आरोपों के बाद SBI की ओर से भी तुरंत जवाब आया। Ecowrap टीम के सदस्य डॉ. तपस परिदा ने एक विस्तृत पोस्ट में आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि रिपोर्ट में इस्तेमाल किया गया डेटा सरकारी स्रोतों (MOSPI) से लिया गया है, जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है।
डॉ. परिदा ने कहा, “हमने RBI को स्रोत के रूप में उद्धृत किया है। हमने पुराने आंकड़ों को अपडेट किया है, किसी की मेहनत की नकल नहीं की।” उन्होंने अपने पोस्ट में सूफी कवि रूमी की पंक्तियों का हवाला देते हुए लिखा, “अपनी आवाज़ नहीं, अपने शब्द ऊंचे करो — बारिश फूल उगाती है, गरज नहीं।”
विशेषज्ञों ने कहा — “रिसर्च की नैतिकता ज़रूरी”
इस पूरे विवाद पर आर्थिक विशेषज्ञों ने कहा कि यह मुद्दा शोध कार्य में पारदर्शिता और नैतिक मूल्यों की अहमियत को उजागर करता है। उनके अनुसार, वित्तीय संस्थानों को अपने रिसर्च कार्यों में अधिक स्पष्टता और संदर्भ उल्लेख सुनिश्चित करना चाहिए ताकि ऐसे विवादों से बचा जा सके।

