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व्यास पूजा कार्यक्रम: गुरु परंपरा के प्रति श्रद्धा का प्रतीक

व्यास पूजा कार्यक्रम: गुरु परंपरा के प्रति श्रद्धा का प्रतीक

राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई की पहल पर आयोजित हुआ प्रेरणादायी आयोजन

बिलासपुर। बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, बिलासपुर में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के तत्वावधान में महर्षि वेदव्यास जयंती के पावन अवसर पर "व्यास पूजा" कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। यह आयोजन भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा की गौरवशाली विरासत का प्रतीक बनकर उभरा, जिसमें नैतिक मूल्यों की पुनः स्थापना और शिक्षकों के प्रति सम्मान को केंद्र में रखा गया।

मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथि

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. एन.के. चौरे, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, बिलासपुर थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. एस. एल. स्वामी, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय लोरमी-मुंगेली ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति दी।

कार्यक्रम की शुरुआत

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण के साथ हुआ। तत्पश्चात विद्यार्थियों द्वारा अपने गुरुजनों को तिलक, श्रीफल एवं पुष्प अर्पित कर पारंपरिक विधि से व्यास पूजा संपन्न की गई। इस आत्मीय क्षण ने उपस्थित सभी के हृदय में गुरु के प्रति श्रद्धा और भावनात्मक जुड़ाव को और अधिक सुदृढ़ किया।

विद्यार्थी प्रस्तुतियाँ: ज्ञान और प्रेरणा का संगम

कु. विदुषी तिवारी ने महर्षि वेदव्यास के जीवन, लेखन, एवं उनके द्वारा रचित महाभारत, अठारह पुराण तथा ब्रह्मसूत्रों में उनके अतुलनीय योगदान पर विस्तृत व प्रेरणादायी जानकारी प्रस्तुत की।
दीपांशु साहू ने गुरु पूर्णिमा के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए गुरु परंपरा की प्रासंगिकता पर विचार रखे।

वैज्ञानिकों एवं वक्ताओं के विचार

वैज्ञानिक डॉ. दिनेश पांडे ने इस अवसर पर कहा, भारतीय संस्कृति में महर्षि वेदव्यास का स्थान अत्यंत उच्च है। उन्होंने केवल ज्ञान नहीं दिया, बल्कि धर्म, नीति और समाज के संतुलन के लिए कालजयी ग्रंथों की रचना की। उन्होंने विद्यार्थियों से चरित्र निर्माण को प्राथमिकता देने का आह्वान किया।
वैज्ञानिक डॉ. विनोद कुमार निर्मलकर ने गुरु-शिष्य परंपरा की महत्ता बताते हुए कहा, गुरु केवल ज्ञान का स्रोत नहीं, बल्कि जीवन पथ के प्रत्येक मोड़ पर मार्गदर्शक होते हैं। आज की पीढ़ी को इस परंपरा के पुनर्जीवन का वाहक बनना चाहिए।

विशिष्ट अतिथि डॉ. एस.एल. स्वामी का प्रेरक उद्बोधन

डॉ. स्वामी ने अपने वक्तव्य में कहा, महर्षि वेदव्यास जैसे ऋषियों की जयंती मनाकर हम अतीत की दिव्यता से जुड़ते हैं और अपने वर्तमान को संस्कारित करते हैं। शिक्षकों की भूमिका केवल अकादमिक नहीं, बल्कि सामाजिक व नैतिक दिशा देने की भी है।

मुख्य अतिथि डॉ. एन.के. चौरे का मार्गदर्शन

डॉ. चौरे ने कहा, व्यास पूजा हमें यह स्मरण कराती है कि शिक्षक जीवन निर्माता होते हैं। विद्यार्थी जीवन का सर्वोच्च दायित्व है गुरुजनों के प्रति श्रद्धा, अनुशासन और सेवा-भाव का पालन। यदि युवा पीढ़ी महर्षि वेदव्यास के विचारों को आत्मसात करे, तो समाज व राष्ट्र का भविष्य स्वर्णिम हो सकता है।

समापन एवं आभार प्रदर्शन

कार्यक्रम के अंत में वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी अजीत विलियम्स ने सभी अतिथियों, वक्ताओं, प्रतिभागियों एवं विद्यार्थियों का आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा, गुरु पूर्णिमा न केवल भारतीय संस्कृति का पर्व है, बल्कि यह आत्मचिंतन और आत्मविकास का भी अवसर प्रदान करता है।

इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापकगण, वैज्ञानिकगण, कर्मचारीगण एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं की सक्रिय सहभागिता रही, जिससे आयोजन की गरिमा और उद्देश्यपूर्णता और भी अधिक सशक्त हुई।

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