बौखलाया सूरज हो रहा आगबबूला...
सामान्य से दो घंटे ज्यादा चमक रहा है सूर्य
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में इस समय सूरज का प्रकोप चरम पर है। सामान्य से लगभग दो घंटे ज्यादा समय तक सूर्य चमक रहा है, जिससे तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया है और नमी घटकर मात्र 35 प्रतिशत रह गई है। सूर्य की तीव्र पराबैंगनी किरणों के कारण आम जनता भीषण गर्मी का सामना कर रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में अधिक गर्म हो रहे हैं, क्योंकि तेजी से भूमि उपयोग में परिवर्तन हो रहा है। घटती हरियाली और बढ़ती पक्की संरचनाएं गर्मी को और भयंकर बना रही हैं।
बड़ी वजह
- छत्तीसगढ़ में अप्रैल-मई महीनों में परंपरागत रूप से गर्मी रहती है, लेकिन इस बार तापमान सामान्य से अधिक है।
- अनुसंधान में सामने आया है कि विकास कार्यों के नाम पर वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है।
- पक्की संरचनाओं का निर्माण हरित क्षेत्र की जगह ले रहा है।
- सूखा सहनशील पौधों के रोपण में कमी भी गर्मी को बढ़ा रही है।
भूमि उपयोग में परिवर्तन
सड़क, भवन निर्माण और औद्योगिकीकरण ने भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को तेजी से बदल डाला है। इससे न केवल तापमान बढ़ा है बल्कि भूजल स्तर में भी गिरावट दर्ज की गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि समाधान के उपाय तो हैं, लेकिन सरकारी और निजी दोनों स्तरों पर लापरवाही ने स्थिति को गंभीर बना दिया है। भूमि की नमी का स्तर न्यूनतम हो चुका है।
कमी प्री-मानसून बारिश में
पिछले दो वर्षों से अप्रैल और मई में प्री-मानसून बारिश की मात्रा में गिरावट देखी जा रही है।
- पहले जहां समय पर बारिश राहत देती थी, अब उसमें देरी और कमी हो रही है।
- इस परिवर्तन ने गर्मी को और अधिक तीव्र बना दिया है।
- हरित क्षेत्र के विस्तार की जरूरत है लेकिन इस दिशा में गंभीर प्रयास नहीं हो रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय
पौधरोपण है समाधान
"मौजूदा भीषण गर्मी की मुख्य वजह तेजी से घटती हरियाली और भूमि उपयोग में असंतुलन है। विकास कार्यों के साथ-साथ हरित क्षेत्र का समानांतर विस्तार आवश्यक है। सूखा सहनशील, गहन छायादार एवं स्थानीय जलवायु के अनुकूल वृक्ष प्रजातियों का बड़े पैमाने पर रोपण करना चाहिए। शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में 'ग्रीन बेल्ट' विकसित कर तापमान वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है। हर विकास योजना में हरित संतुलन को अनिवार्य करना समय की मांग है।"
— अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर
प्री-मानसून वर्षा में गिरावट से कृषि संकट गहराया
"प्री-मानसून बारिश में कमी और देरी के कारण कृषि क्षेत्र गंभीर संकट में है। मिट्टी में नमी की असमानता बढ़ी है, जिससे खरीफ फसलों की समय पर बुवाई बाधित हो रही है। सूखा सहनशील फसल किस्मों को बढ़ावा देना, वर्षा जल संरक्षण तकनीक अपनाना और मृदा स्वास्थ्य सुधार कार्यक्रमों को समय पर लागू करना आवश्यक है ताकि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बचा जा सके।"
— डॉ. एस.आर. पटेल, रिटायर्ड साइंटिस्ट (एग्रोनॉमी), इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर
