नई दिल्ली। देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत ‘वंदे मातरम’ सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आजादी की लड़ाई का सबसे प्रखर प्रतीक रहा है। 1870 के दशक में रचित यह गीत सामूहिक चेतना, विद्रोह और राष्ट्रप्रेम का ऐसा सूत्र बना, जिसने गुलामी की जंजीरों में बंधे देश को मानसिक आज़ादी का पहला स्वाद दिया।1870 के दशक में जन्मा ‘वंदे मातरम’: एक गीत जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन बदल दी
[caption id="attachment_99787" align="alignnone" width="1200"]
वंदे मातरम[/caption]कैसे जन्मा ‘वंदे मातरम’?
अंग्रेजी शासन के दमनकारी दौर में बंगाल सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। इसी माहौल में प्रसिद्ध साहित्यकार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने मातृभूमि को देवी स्वरूप मानकर ‘वंदे मातरम’ की रचना की। यह सिर्फ कविता नहीं थी, बल्कि एक मानसिक क्रांति थी जिसने यह भाव जगाया कि देश ही हमारी मां है।
पहली बार कब लिखा और छपा?
माना जाता है कि इस गीत के मूल भाव 1870 के दशक के मध्य में लिखे गए।
7 नवंबर 1875 को यह पहली बार ‘बंगदर्शन’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ। उस समय ऐसी उग्र राष्ट्रवादी भावना का छपना ही अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह था।
पहली बार कब और किसने गाया?
1896 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया। यह क्षण ऐतिहासिक बन गया—गीत आंदोलन में बदल गया।
धुन की रचना
आरंभ में इसे पारंपरिक शैली में गाया जाता था। बाद में कई संगीतकारों ने इसकी धुनें तैयार कीं।
सबसे प्रसिद्ध धुन ए. आर. रहमान द्वारा बनाई गई, जिसने इसे वैश्विक पहचान दी।
आजादी की लड़ाई में वंदे मातरम का योगदान
स्वदेशी आंदोलन (1905) से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन (1942) तक, भारत के हर बड़े आंदोलन की गूंज वंदे मातरम रही।
1905 – बंगाल विभाजन
स्वदेशी आंदोलन की आग में ‘वंदे मातरम’ एक युद्धनाद बन गया।
विदेशी कपड़ों की होली से लेकर विरोध जुलूसों तक, हर जगह यही नारा प्रतिरोध की आवाज बना।
1916 – होम रूल मूवमेंट
तिलक और एनी बेसेंट के आंदोलन में सभी सभाओं की शुरुआत और अंत वंदे मातरम से किया जाने लगा।
1920 – असहयोग आंदोलन
सरकारी नौकरियां और स्कूल छोड़ने वाले लोग हर रैली में इसे गाते हुए निकलते थे।
1930 – दांडी मार्च
नमक सत्याग्रह में सत्याग्रहियों के कदमों की ताल भी वंदे मातरम के साथ चलती थी।
1942 – भारत छोड़ो आंदोलन
यह गीत अंग्रेजी हुकूमत के लिए सबसे बड़ा खतरा बना।
लाठीचार्ज और गोलीबारी के बीच भी लोग ‘वंदे मातरम’ ऊपर से ऊपर आवाज में बोलते थे।
क्यों छोटा किया गया गीत?
1937 में कांग्रेस के फैजाबाद अधिवेशन में फैसला लिया गया कि गीत के कुछ अंतरे धार्मिक रूपक लिए हुए हैं।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की सलाह पर आधिकारिक उपयोग में सिर्फ पहले दो अंतरों को रखा गया।
जन गण मन राष्ट्रगान क्यों बना?
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने निर्णय लिया कि:
जन गण मन राष्ट्रगान होगा
वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत का सम्मान मिलेगा
क्योंकि जन गण मन देश की विविधता को अधिक समावेशी रूप में प्रस्तुत करता था, जबकि वंदे मातरम आजादी की लड़ाई की आत्मा के रूप में प्रतिष्ठित था।
