बिलासपुर – अमरूद की पोषण गुणवत्ता और सेब जैसी बनावट व रंग। इसलिए यह फल पहचाना जाता है सेब अमरूद के नाम से।
देश भले ही विश्व में सबसे बड़ा सेब अमरूद उत्पादक देश के रूप में माना जा रहा हो लेकिन अपना प्रदेश इस फल की व्यावसायिक खेती को लेकर सबसे पीछे है, जबकि इसके पौधे आसानी से उपलब्ध होते रहे हैं। चलिए देर से ही सही, रोपण को लेकर अब प्रदेश के 6 जिलों के फल उत्पादक किसान रुचि दिखा रहे हैं।
जानिए सेब अमरूद को
सेब अमरूद फल की ऐसी प्रजाति है, जिसमें अमरूद की पोषण गुणवत्ता और सेब की बनावट का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। सामान्य अमरूद की तुलना में इसमें रोग सहनशीलता अधिक होती है। लाल दोमट मिट्टी में सरलता से तैयार होने वाला सेब अमरूद 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान पर बेहतर उत्पादन देता है। विटामिन-C, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर यह फल स्वास्थ्य के लिहाज़ से भी बेहद उपयोगी है।
उत्पादन और उपयोगिता
सेब अमरूद का पौधा रोपण के तीसरे वर्ष से फल देना प्रारंभ कर देता है। अनुसंधान में पाया गया है कि 5 वर्ष पुराने पेड़ 30 से 40 फल प्रतिवर्ष देते हैं, जबकि पूर्ण विकसित वृक्ष से 400 से 600 फल तक सालाना उत्पादन संभव है। उच्च विपणन मूल्य को देखते हुए इससे जूस, जेली, जैम और स्क्वैश जैसे सह-उत्पाद बनाए जा सकते हैं, जो किसानों की आय को कई गुना बढ़ा सकते हैं।
दिखा रहे रुझान ये जिले
परंपरागत अमरूद की खेती कोरबा, जांजगीर, महासमुंद, बेमेतरा, गरियाबंद और बिलासपुर जिले में होती रही है। सेब अमरूद की व्यावसायिक खेती की राह इन्हीं 6 जिलों से खुल रही है क्योंकि यहां के किसान रोपण की न केवल तैयारी कर रहे हैं बल्कि पौधों की खरीदी भी प्रारंभ कर चुके हैं। यानी ये जिले अब प्रदेश में फल क्रांति की ओर बढ़ चले हैं।
उच्च पोषण और बाजार मांग वाला फल
सेब अमरूद एक उच्च पोषणयुक्त और बाज़ार मांग वाला फल है, जो छत्तीसगढ़ की जलवायु और मिट्टी के लिए उपयुक्त है। इसकी रोग सहनशीलता और सह-उत्पादों की बहुलता इसे किसानों के लिए लाभकारी विकल्प बनाती है। यदि सुनियोजित ढंग से रोपण और विपणन किया जाए, तो यह प्रदेश की फल उत्पादन क्षमता को नई ऊँचाई तक ले जा सकता है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर
