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कृषि छात्रों ने प्राप्त किया जैव उर्वरक एवं जैव कीटनाशकों के उत्पादन का तकनीकी प्रशिक्षण महाविद्यालय की पहल

 कृषि छात्रों ने प्राप्त किया जैव उर्वरक एवं जैव कीटनाशकों के उत्पादन का तकनीकी प्रशिक्षण महाविद्यालय की पहल

बिलासपुर - बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, बिलासपुर के चतुर्थ वर्ष के छात्र-छात्राओं ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम अनुभवात्मक अधिगम कार्यक्रम (इएलपी माड्यूल) के अंतर्गत चोरभट्टी, बिलासपुर स्थित राज्य जैव नियंत्रण प्रयोगशाला में जैव उर्वरक एवं जैव कीट-रोगव्याधि उत्पादों के वृहद उत्पादन का गहन प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह कार्यक्रम डॉ. प्रमेंद्र कुमार केसरी, वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान) एवं डॉ. विनोद निर्मलकर, वैज्ञानिक (पादप रोग विज्ञान) के कुशल मार्गदर्शन में संपन्न हुआ, जिसमें विद्यार्थियों ने एजेटोबैक्टर, पीएसबी, केएसबी, एजोस्पिरिलम एवं एनपीके कंसोर्टिया जैव उर्वरकों के साथ-साथ मेटाराजियम, बेवेरिया, ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनास और बेसिलस सबटीलिस जैव कीटनाशकों का उत्पादन किया। ये छात्र अब इन जैव उत्पादों को किसानों को उपलब्ध कराकर न केवल कृषि क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक बन स्वालंबन को अपना रहे हैं।

इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता, डॉ. एन.के. चौरे ने मुख्य अतिथि के रूप में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि जैव उत्पाद पारंपरिक रासायनिक उत्पादों की तुलना में अधिक पर्यावरण-अनुकूल होते हैं, जिससे प्रदूषण में कमी आती है। जैविक स्रोतों से प्राप्त ये उत्पाद नवीकरणीय एवं सतत कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं। जैव उर्वरक, जैव कीटनाशक और जैव निमोनीकरण एजेंट मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के साथ-साथ फसल उत्पादन में भी वृद्धि करते हैं।

डॉ. चौरे ने आगे कहा कि जैव उत्पादों का उपयोग ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में सहायक है। इनका बढ़ता उपयोग स्वच्छ और हरित कृषि के साथ सतत विकास व पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि वे इस तकनीकी ज्ञान का अधिकतम उपयोग करें और इसे किसानों तक पहुँचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। डॉ. चौरे ने पाठ्यक्रम के अंतर्गत छात्र -छात्राओं को जैव उत्पादों का विक्रय हेतु वितरण किया।

इस अवसर पर डॉ.आर.के.एस. तोमर, प्रमुख वैज्ञानिक (कीट विज्ञान) एवं बीएससी (कृषि) चतुर्थ वर्ष के छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

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